बरेली अपने झुमके और सुरमे के लिए ही नहीं जरी के लिए भी मशहूर है। इसका दूसरा नाम जरी नगरी भी है। यूपी सरकार की योजना वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रॉडक्ट के तहत भी जरी उद्योग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है।
पर फिलहाल, बरेली के जरी उद्योग के लिए समय सही नहीं चल रहा है। पहले नोटबंदी और अब लॉकडाउन के चलते जरी के कारीगर मजदूरी करने को मजबूर हैं। इसके अलावा चीन की बनी मशीनों ने भी हुनरमंदों का काम छीना है।
बरेली में हाथ से बनी साड़ियों पर जरदोजी होती थी। पहले जरी का काम बरेली से देश के बाहर सप्लाई किया जाता था जिसके चलते बरेली शहर एवं बरेली देहात के हिंदू एवं मुस्लिम समाज के लोग इस कारोबार से जुड़े हुए थे। अमेरिका, दुबई, जापान, टर्की, अरब की गल्फ कंट्रीज में बरेली से हाथों की तराशी हुई साड़ियों को भेजा जाता था जिसके सहारे काफी कारीगरों को रोजगार मिलता था।
चीन की बनी मशीनों ने की हुनर की बेकद्री
साबिर हुसैन भी बड़े जरी कारोबारी हैं। उनका कहना है, ‘जरदोजी हाथ का काम है, कारीगर अपना हुनर साड़ी पर दिखाता है लेकिन चाइना से आई हुई मशीनों ने भी काफी बड़े पैमाने पर जरी-जरदोजी के कारीगरों से व्यापार छीनने में कोई कसर नहीं बाकी रखी, दो हाजार की साड़ी जो कि हाथ से बना कर देते थे वह अब चाइनीज मशीन से दो सौ या तीन सौ रुपये में बाजार में मिल जाती है।
इसके चलते भी काफी बड़े पैमाने पर कारीगरों को नुकसान उठाना पड़ा है और बड़े-बड़े कारोबारी भी लाखों रुपए का नुकसान उठाकर व्यापार बंद करके दूसरा व्यापार करने का मन बना रहे हैं।
ई-रिक्शा चला रहे हैं कारीगर
लेकिन नोटबंदी के बाद से आई गिरावट के बाद बरेली शहर एवं बरेली देहात के बड़े-बड़े व्यापारियों के कारखाने बंद हुए। रही सही कसर लॉकडाउन ने पूरी कर दी। बाबू कलेक्शन जरी के काफी बड़े कारोबारी हैं।
उन्होंने बताया, ‘पुश्तैनी कारोबार के चलते जरी के व्यापार से हिंदू एवं मुस्लिम समाज का काफी बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ था पर अब 20% ही काम कर रहे हैं। नोटबंदी और फिर लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में कारीगर बेरोजगार हुए हैं और अब ई-रिक्शा चला रहे हैं या सब्जी बेच रहे हैं।
वाजिद हुसैन जरी कारोबार से करीबन 100 साल से जुड़े हुए हैं पहले 40 से 50 लाख रुपए का सालाना व्यापार किया करते थे।
पर साल 2014 के बाद जरी के काम में इतनी गिरावट आई की सालाना खर्चे निकालना और कारीगरों को वेतन मुहैया कराना ही नामुमकिन सा लगने लगा। एक्सपोर्ट बंद होने से सरकार ने जरी कारोबारियों की कमर तोड़ दी।
सालाना व्यापार पांच लाख से दस लाख रुपये पर आ गया। अब तो कोरोना महामारी के चलते अब सेल जीरो हो गई है। उनका कहना है, ‘मोदी सरकार लोकल फॉर वोकल का नारा तो दे रही है। लेकिन आने वाले समय में कोई भी उम्मीद जरी कारीगर को नहीं दिखाई दे रही है।’