ज़ाहिर है जब 1970 के दशक में ‘ऑयल बूम’ आया और खाड़ी के देशों में निर्माण, दफ़्तरों में काम करने और तेल के कुंओं और रिफ़ाइनरी को चलाने और दूसरे कामों के लिए लोगों की ज़रूरत हुई तो दक्षिणी सूबों ख़ासकर केरल से वहां जानेवालों का सिलसिला सबसे ज़्यादा रहा।
एक रिपोर्ट के अनुसार खाड़ी मुल्को में तक़रीबन 85 लाख भारतीय रहते हैं और ये विश्व की सबसे बड़ी प्रवासी आबादियों में से एक है।इतना ही नहीं रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में दुनिया भर के मुल्क से पैसा आता है उनके पांच टॉप स्रोत में से चार खाड़ी देश – संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब, कुवैत और क़तर देश शामिल हैं।
लेकिन विश्व बैंक के एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2020 में दक्षिण एशिया में विदेशों से भेजे जाने वाले पैसों में कम से कम 22 फ़ीसद की गिरावट आएगी। आर्थिक जगत की जानी मानी समाचार और रिसर्च एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक़ यूएई से भारत आने वाले फंड में साल 2020 की दूसरी तिमाही में ही अनुमानत: 35 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
अरब देशों में काम करने वाले सैकड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं, जिनकी नौकरियां बची है उन्हें तनख़्वाह में कटौती झेलनी पड़ रही है। दुबई-स्थित विमान कंपनी अमीरात ने 30,000 लोगों को काम से बाहर करने की बात कही है। अमीरात कामगारों के हिसाब से यूएई की सबसे बड़ी कंपनी मानी जाती है।
इस बीच कुवैत जैसे मुल्क ने, जहां प्रवासियों की आबादी वहां के मूल निवासियों से भी अधिक है, एक ऐसा क़ानून बनाने की कोशिश कर रहा है जिससे स्थानीय लोगों की नौकरियों में तादाद बढ़े और प्रवासियों के लिए एक कोटा सिस्टम लगाया जा सके। तक़रीबन पैंतालीस लाख की कुल आबादी में मूल कुवैतियों की जनसंख्या महज़ 13.5 लाख के करीब ही है।
दक्षिण के पांचों सूबे – केरल, तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, जिनमें बाहर काम करनेवालों की तादाद इतनी अधिक है कि वहां इनके लिए अलग से मंत्रालय या दूसरी एनआरआई सरकारी वेलफ़ेयर संस्थाएं मौजूद हैं, महामारी से निपटने में इस क़दर उलझे हैं कि उनका ध्यान शायद इस आनेवाले संकट की तरफ़ गया ही नहीं है।